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बरसते तुम / इंदुशेखर तत्पुरुष
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बरसते तुम
बरसते जैसे
अम्बर से
कभी पानी-
कभी आग
पुलकित धरती का रोम-रोम
हो जाता हरियल कभी
कभी झुलसा देते
सारी की सारी
खड़ी फसल।