भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बस्ता / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
बस्ता
पीठ पर लादे
गोवर्धन-सा बड़ा बस्ता
बने गिरिधर
आ रहे हैं श्यामसुन्दर
चढ़ रहे
सोपान शिक्षा के
डगमगाते पाँव पतले
काँपते हैं
श्यामसुन्दर हाँफते हैं
तीसरी में ही गये
लेकिन अभी से
बन गये हैं फाहियान
ढो रहे हैं पीठ पर
संसार भर का ज्ञान
पढ़ेंगे
पढ़कर करेंगे खूब कमाई
सोचते हैं फीस भरकर
बाप माई
किन्तु जब
पूरी पढ़ाई हो चुकी
स्कूल से निकले
तो देखा-श्यामसुन्दर रह गये हैं
इंच भर के बोन्साई