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बह गया पहाड़ / राधेश्याम तिवारी
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अंजुरी में जल आया
नदी नहीं आई
छूने गया तो
बज गया सितार
देखते ही देखते
बह गया पहाड़
अभी-अभी टीला था
अभी-अभी खाई
जीवन के संग-संग
पवन भी विहरता
पत्तों के गिरने से
पेड़ भी है झड़ता
छिपी है बड़ाई में
गहरी रुसवाई ।