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बाज़ार / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
1.
पहले दबोचा
फिर नोचा कुछ इस तरह
कि
मज़ा आ गया !
2.
उड़ा ले गई
छप्पर का पुआल
देह की मिरजई
बाज़ार बेपर्द करता है
बेरूखी से ।
3.
पहले ख़रीदता हूँ
चमकीले
काँच के टुकड़े
बिखेरता हूँ जिन्हें
फ़र्श पर
बीनता हूँ फिर
बारीक़ियों से
किसी ख़तरे के अंदेशे में ।