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बादल / अमरेन्द्र
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ताक धिनक धिन ताक धिनक धिन
मुन्नी ऐलै बरसा रोॅ दिन
हाथी बनी केॅ बादल आवै
सूँड़ोॅ सें सबकेॅ नहलावै
उजरोॅ-कारोॅ ढलमल ढल छै
लगै पहाड़े रं बादल छै
बुली-बुली केॅ सबरोॅ ऐंगन
बरसावै पानी सद्दोखिन
ताक धिनक धिन ताक धिनक धिन।
की समुद्र छै ई बादल मेॅ
खेत टटैलोॅ डुबलै जल मेॅ
खलखल नद्दी की रं उमड़ै
रही-रही केॅ बादल घुमड़ै
कारोॅ मेघ मेॅ ठनका लागै
धुआँ बीच मेॅ जेना आगिन
ताक धिनक धिन ताक धिनक धिन ।