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बुजुर्गी बचपना काला न कर दे / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
बुजुर्गी बचपना काला न कर दे।
कहीं गंगा हमें मैला न कर दे।
अंधेरे को ज़रा महफ़ूज रखिए
ये मनबढ़ रौशनी अंधा न कर दे।
सफ़र दुश्वार कर देंगे ये आँसू
तू मेरा रास्ता आसान कर दे।
तुम्हारे इल्म का चमकीला दर्पण
मेरे चेहरे को बे-चेहरा न कर दे।
मुझे अवहेलना चर्चा में लाई
बड़ाई सब कहीं उल्टा न कर दे।
ये चुप्पी दिग्विजय करने चली है
ख़मोशी बीच में हल्ला न कर दे।
इसे महफ़ूज रखिए दिल तलक ही
मोहब्बत जेहन पर हमला न कर दे।