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बुनाई का दुख -2 / कमल जीत चौधरी
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कमल जीत चौधरी
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आजीवन
एक धागा बुनता रहा
मेरा क्षण-प्रतिक्षण
प्रतिकार में उसने
खो दिया अपना अन्तिम सिरा ।