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बेयरा / सौरभ
Kavita Kosh से
पुराने रेस्तरां का
झुका हुआ सा
वह बूढ़ा बेयरा
आज फिर अपनी ड्यूटी पर हाजिर है
आते ही जैकेट पहन लग गया है प्लेटें पोंछने
भीड़ देख कर हमेशा की तरह
आज भी उत्साहित है
तब बेटी रा बस्ता एक मुद्दा था
आज उसकी शादी
जल्दी-जल्दी हाथ चलाता वह
आतुर है आर्डर लेने को
उसके टेबल पर आज पुराने साहब विराजमान हैं
हाथों में सिगार लिये
अच्छी टिप मिलने की उम्मीद में
और खिल उठा उस का चेहरा
एक हम ही तो हैं जिनकी
ऊपर की कमाई में ईमानदारी है
वह हंस कर कहता।
साहब को सेल्यूट मार
उनका चिरपरिचित आर्डर सर्व किया
अब बीस रुपये का टिप कमा
वह उछल रहा है
टेबिल खाली होते ही
अगले ग्राहक के इंतजार में
फिर से आतुर है
वह झुका हुआ सा, बूढ़ा बेयरा।