भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोल री कठपुतली डोरी कौन संग बांधी / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोल री कठपुतली डोरी कौन संग बाँधी
सच बतला तू नाचे किसके लिए
बावली कठपुतली डोरी पिया संग बाँधी
मैं नाचूँ अपने पिया के लिए
बोल री कठपुतली ...

नए नाम नित नए रूप धर मैं आई मैं चली गई
लेकिन मैने धूम मचा दी जिस नगरी जिस गली गई
छोड़ के जग तारों में जा पहुँची वहाँ भी यही पुकार
बोल री कठपुतली ...

मीठी यादें सुन्दर सपने खो बैठे ये लोग जिन्हें
मन का यह मीत बनाकर मेरे दिल ने दिया तुम्हें
कठपुतली का खेल ये दुनिया साँवरिया उस पार
बोल री कठपुतली ...