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ब्रह्म / सौरभ
Kavita Kosh से
मैं करके भी कुछ नहीं करता
भर कर भी रिक्त ही रहता हूँ
जन्मता हूँ फिर भी जन्म नहीं होता मेरा
मरता हूँ फिर भी मरण नहीं होता मेरा
दुःख आता है मिलता नहीं मुझ में
सुख आता है छू नहीं पाता मुझे
मैं गहरा हूँ भाव से
और ऊँचा हूँ विचार से
पूरे विश्व में मैं ही हूँ थिर-स्थिर
मैं कभी सोता भी नहीं
सूक्ष्म होते हुए भी विशाल हूँ मैं
पूर्ण सम्पूर्ण हूँ
हाँ, मैं ही हूँ वह
जिसकी तलाश है तुम्हें।