भुइंडोल / विनय राय ‘बबुरंग’
कइले बा जिनगी हमार डवांडोल रे।
ए काका। कहवां से आइल भुइंडोल रे॥
पनफल जिनिगिया ई अइसन खोटाइल -
केतनो हम सीचलीं ई नहियें फुलाइल
जनलीं का बखरा में मिलिहें भकोल रे,
ए काका कहवां से आइल भुइंडोल रे॥
खाई जाला बीचही में चले जब कोटा
देखऽ उठावेला ई कोठवे पर कोठा
कथनी आ करनी क खुललि ई पोल रे,
ए काका कहवां से आइल भुइंडोल रे॥
मिलति बा लेइ आवs मुरुगी आ बकरी
जोड़ले जब सुदिया त छूटेला हंफरी
आइल समाजवाद पीटेला ढोल रे,
ए काका! कहवां से आइल भुइंडोल रे॥
केतनो हम कइलीं बिकसवा क खेतिया
तबहूं कुंवारि रही गइली घर बिटिया
टूटलि कमरिया धइ लिहलीं खटोल रे,
ए काका कहवां से आइल भुइंडोल रे॥
जाति अउरी पंतिया क बहेला बयरिया -
जीयहूं न देला ई बिगारेला डहरिया -
अल्ला हो अकबर हर बम बोल रे,
ए काका! कहवां से आइल भुइंडोल रे॥
कइसे निकाली हम कंठ से कजरिया
सूझे नाहीं जाई हम केवनी डहरिया
घूमत बैताल बाटे देखऽ टोल-टोल रे,
ए काका! कहवां से आइल भुइंडोल रे॥
जबले ना बदली ई नरक जमनवां
तबले न साफ होई घर के अगनवां
अपने हाथे अपने तूं तकदीर खोल रे,
ए काका! कहवां से आइल भुइंडोल रे॥