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भोर के पंछी / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
भोर के पंछी
उड़-उड़ आए ।
ओ मेरी माई !
ज़रा छत पर आना
मुट्ठी में भर कर
दाने लाना
बैठे हैं सब
तेरी आस लगाए ।
दाने चुगेंगे
फिर पानी पिएँगे
देंगे दुआएँ, माई !
जब तक जिएँगे ।
इनकी दुआ न कभी
खाली जाए ।
भोर के पंछी
उड़-उड़ आए ।