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मधु के दिवस, गंधवह सालस / सुमित्रानंदन पंत

मधु के दिवस, गंधवह सालस
डोल रहा वन में भर मर्मर!
सकरुण घन फूलों का आनन
धुला रहा, बरसा जल सीकर!
गाती बुलबुल, भीरु कुसुमकुल,
खोलो मधुपायी, मदिराधर!
खिल जाए मन, रँग जाए तन,
पीलो, पीलो मदिरा की झर!