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मन है एक पपीहा / कांतिमोहन 'सोज़'

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मेरा मन है एक पपीहा
एक शब्द ही इसने सीखा
हर पल हर छिन रटता रहता
पिऊ पिऊ बस पिऊ पिऊ !

पिऊ पिऊ बस पिऊ पिऊ ।

फैला फैला नील गगन है
लेकिन इसको एक लगन है
अपनी धुन में मस्त-मगन है
पिऊ पिऊ बस पिऊ पिऊ ।

एक दिन थककर सो जाएगा
महा बिपिन में खो जाएगा
तब तक जल-थल हो जाएगा
पिऊ पिऊ बस पिऊ पिऊ ।

पिऊ पिऊ बस पिऊ पिऊ ।।