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माँ और उसकी साथिनें / ब्रजेश कृष्ण

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अक्सर गाती थीं
माँ और उसकी साथिनें

अलस्सुबह उठ कर
आटा पीसते
कार्तिक स्नान को जाते
घर को लीपते-बुहारते
अक्सर गाती थीं
माँ और उसकी साथिनें

तीज-त्योहार
शाही-ब्याह पर
या फिर बेवजह
खू़ब-खू़ब गाती थीं
माँ और उसकी साथिनें

यह खु़द को अतीत में
धकेलने की कोशिश नहीं
सवाल है छोटा सा
कि अब
क्यों नहीं गातीं
माँ और उसकी साथिनें?