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मुक्त / रेखा चमोली

लकीरें
एक के बाद एक
फिर भी छूट ही जाता है
कोई न कोई बिन्दू
जहॉ से फूटतीं हैं राहें
चमकती हैं किरणें
इन्हीं राहों से होकर
इन्हीं किरणों की तरह
निकल जाना तुम
लकीरों से बाहर
रचना अपना मनचाहा संसार
जिसमें लकीरें
किसी की राह न राकंे
न ही एक दूसरे को काटें
बल्कि एक दूसरे से मिलकर
तुम्हारे नये संसार के लिए
बनें आधार।