भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझको-तुमसे / पूनम गुजरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समय के साथ
बदल जाते हैं
अर्थ
भाव
विचार
और स्मृति भी
बस नहीं बदलते
अक्षर
ज्ञान
प्रेम
और
संवेदनाओं के तंतु
जो जोङते है
तुमको-मुझसे
मुझको-तुमसे।