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मुझसे डर और मुझे डरा तू / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
मुझसे डर औ मुझे डरा तू
छिछला, लेकिन, दिख गहरा तूं।
साधन, संसाधन सब तेरे
क्यों जीता है, मरा-मरा तू।
बहुत बनैला और अघाया
लेकिन फिर भी बेसबरा तू।
अभी हंसाए, अभी रूलाए
नाज़नीन का सा नख़रा तू।
मेरे जीवन से कब निकला
चाहे कितना भी अख़रा तू।
हार और गुलदस्ते तेरे
मेरी बगिया का ख़तरा तू।
इक दिन ये पक्का होना है
मैं बोलूंगा, ठहर जरा तू।