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मुरलिया! मत बाजै अब और / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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मुरलिया! मत बाजै अब और।
हर्‌यौ सील-कुल-मान, करी बदनाम मोय सब ठौर॥
रह्यो न मोपै जाय, सुनूँ जब तेरी मधुरी तान।
उमगै हियौ, नैन झरि लागै, भाजन चाहैं प्रान॥
कुटिल कान्ह धरि तोय अधर पर राधा-राधा टेरै।
रहै न मेरौ मन तब बस में गिनै न साँझ-सबेरै॥
घर कौ काम, सास-पति-सेवा, सब कौ मोह बिसार।
करनौ परै मोहि बरबस तब मोहन हित अभिसार॥
बंसी सखी! बिनय सुन मेरी, तजि दै यह उतपात।
वा छलिया के बस ह्वै मो पै मती करै तू घात॥