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मुर्गा / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
मुर्गा बाँग लगावै छै
भोरे भोर जगावै छै ।
जेन्हैं भोरकवा उगलोॅ कि
चंदा-तारा डुबलोॅ कि
पहरेदारोॅ रं जोरोॅ सेॅ
कुकड़ू कूँ सुनावै छै
मुर्गा बाँग लगावै छै
भोरे भोर जगावै छै ।
पनसोखा रं पखना छै
मू़ड़ी उपरे राखना छै
मोर सुहावै जेहनोॅ सर पर
लौकेट होने सुहावै छै
मुर्गा बाँग लगावै छै
भोरे भोर जगावै छै ।