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मैं तुमसे क्या बात कहूँ / रामगोपाल 'रुद्र'

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मैं तुमसे क्या बात कहूँ, क्या बात नहीं!

दिन-भर तो रहता है मेला,
हाट-बाट का झूठ-झमेला;
पर जब नभ सजने लगता है,
मेरा मन बजने लगता है,
तुम आँखें भर जाते हो, किस रात नहीं!

तुमने समझा वर्षा बीती,
होगी सावन-सरिता रीति;

लेकिन, जिनका स्रोत हिमानी,
कैसे सूखे उनका पानी!
कब इन आँखों रहती है बरसात नहीं!