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मैदान / श्याम किशोर
Kavita Kosh से
जहाँ तुम खड़े हो
वहीं से शुरू होता है एक हरा मैदान
यात्रा के लिए आमंत्रित करता हुआ ।
उसकी सीमा कहाँ है
सवाल बेमानी है
चलते-चलते
जहाँ पहुँच कर तुम रुक जाते हो
और मुड़कर पीछे देखते हो
वहीं ठहर जाता है मैदान ।
यानी, तुम्हीं से शुरू
और तुम्हीं पर ख़त्म हो जाता है मैदान ।