भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यार क्यों हो गया ख़फ़ा मुझसे / ब्रह्मजीत गौतम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यार क्यों हो गया ख़फ़ा मुझसे
ऐसी क्या हो गई ख़ता मुझसे

ज़ख़्म ये दिल पे मेरे कैसे हुए
हाल कोई तो पूछता मुझसे

वक़्त की बेरुखी का क्या कहना
साथ हो कर भी है जुदा मुझसे

कोई क़ातिल है उनके रुख़ का तिल
जान मेरी वोले गया मुझसे

नींव बोली कि ऐ कँगूरेसुन
ये बुलंदी हुई अता मुझसे

मंज़िलें ख़ुद ही पास आएँगी
ले के चल हौसला ज़रा मुझसे

हार में ग़म न ‘जीत’में ख़ुशियाँ
सीख लीजे ये फ़ल्सफ़ा मुझसे