भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
युग यही है दे रहा आवाज़ / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
युग यही है दे रहा आवाज़।
बदल डालो रूढ़ भ्रष्ट समाज॥
जो दिलों में दूरियाँ डाले
नष्ट हों वह रस्म और रिवाज़॥
हक़ सभी निजतन्त्रता का लें
देश पर अपने हो अपना राज॥
खिल उठे हर ओर सुख के फूल
जब मिले सबको खुशी पर ब्याज॥
हों प्रतिष्ठित पुनः श्रम के बिंदु
हर श्रमिक के शीश पर हो ताज॥
अब हटा दें युद्ध की पोशाक
सजा लें सुख शांति का नव साज॥
विश्व सागर उर्मियों के मध्य
बने अपना देश एक जहाज॥