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ये आमजन की आग / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
आग है-
ये आग है
मेहनतकशों की आग है !!
आग है यह विषमता को
मिटाने की आग है
आग है यह दनुजता को
मिटाने की आग है
दुश्मनों के वास्ते
ये रक्तरंजित फाग है ।
आग भूखों मुफ़लिसों की
आह से निकली हुई
आग है यह क्रांतिपथ की
राह से निकली हुई
युद्ध का आह्वान करती
शुद्ध भैरव राग है ।
नव-धनाढ्यों के अहं को
जलाने की आग है
ख़ाक में पूँजीपति को
मिलाने की आग है
आग है यह सर्वहारा
के उदर की आग है ।
उठ रहा है आदमी अब
गर्जना करता हुआ
मानवी अधिकार पाने
चेतना भरता हुआ
ये प्रलय के महासागर
से निकलती झाग है ।