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रश्मि खोने लगी / रंजना वर्मा

रश्मि खोने लगी
रात होने लगी

साँझ आकाश में
चाँद बोने लगी

छू लिया प्यार ने
पीर रोने लगी

झील में चाँदनी
पाँव धोने लगी

देख लो रौशनी
आज सोने लगी

ओस से मोतियों
को पिरोने लगी

दीप में ज्योति को
है सँजोने लगी

ओस है फूल को
यों भिगोने लगी

यामिनी धुन्ध के
बीच खोने लगी