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राख से दिन जुड़ गये / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
पल उजाले के
हथेली में धरे थे
उड़ गये
एक उथली नदी में
डूबे बहुत हम
दृश्य धुँधले हो गये
ऊबे बहुत हम
कौन जाने
किस जगह से
रास्ते कब मुड़ गये
धूप के होने
न होने की खबर ले
इधर बढ़ते पाँव
जा पहुँचे किधर थे
राख के
आकाश से
दिन यों अचानक जुड़ गये