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राजा / विनय कुमार
Kavita Kosh से
आता है कोई चतुर सुजान
राजा को ईश्वर का अवतार बता जाता है
आता है कोई नीतिज्ञ
और धर्म को राजा का छत्र बना जाता है
आता है कोई चारण और राजा के हाथ में
एक से एक चमत्कारी शस्त्रास्त्र थमा जाता है
और महाकवि जो राजशय्या पर अप्सराएँ लिटा जाता है
लोग चकित विस्मित भयभीत चीख़ते हैं
त्राहि माम् त्राहि माम् त्राहि माम्
जय हो जय हो जय हो
राजा बाहर आता है
जैसे कथाओं की म्यान से खिंचा कोई खड्ग
और अपनी चमक दिखाकर लौट जाता है
थोड़ा जादू तो चाहिए
प्रजा-भाव स्वयंभू नहीं
श्रद्धा अकारण नहीं !