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रात गए आँखों से / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
जलता है गाँव, घर, नगर
धू... धू... धू...
रात गए आँखों से चलती है
लू... ऽ... ऽ... ऽ...
दाएँ जाना,
जाकर बाएँ को मुड़ना,
देखा है, चेहरों से
चिड़ियों का उड़ना।
याद आई क्या?
कोई, फिर —
नगरवधू !!
एक-एक, दो
फिर उसके बाद
टूट गया
मिट्टी-पानी का
रिश्ता
हम न हुए,
वरना,
क्या होते टेसू।