भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात जब जितनी काली रहेगी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
रात जब जितनी काली रहेगी
भोर उतनी उजाली रहेगी
होलिका दोष देगी जला सब
खूब रौशन दिवाली रहेगी
आये बरसात भी झूम कर तो
इंद्र धनु छवि निराली रहेगी
साँवरा साथ देगा उसी का
जिसकी सीरत न काली रहेगी
मुग्ध होगा उसी पर हृदय भी
जो सुघर रूप वाली रहेगी
जोतना खेत आसान होगा
हाथ मे जब कुदाली रहेगी
देश के शिशु सभी स्वस्थ होंगे
धेनु हर घर मे पाली रहेगी
पथ प्रदर्शक बने सांवरा तो
हर डगर देखी भाली रहेगी
राह से रथ न मन का डिगेगा
वल्गा हरि ने संभाली रहेगी