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रात भर छाई रही हैं बदलियाँ / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
रात भर छाई रही हैं बदलियाँ।
ले रही बरसात है अंगड़ाइयाँ॥
खेत सूखे जिन किसानों के पड़े
कान उनके बज रहीं शहनाइयाँ॥
उड़ न जायें घन हवा का साथ पा
अब सुहायेंगी न ये गुस्ताखियाँ॥
रात गहराने लगी है देख लो
हैं नज़र आतीं न अब परछाइयाँ॥
अब उमंगें आँख में हैं बोलतीं
कितनी तन्हा हो गईं तनहाइयाँ॥
कर दया कि दृष्टि अब इस ओर भी
हैं सही जातीं न ये रुसवाईयाँ॥
दोष कुछ उन का नहीं है साथियों
हाथ में जिन के थमीं बैसाखियाँ॥