भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राधा बिन कान्हा / अरुण हरलीवाल
Kavita Kosh से
राधा बिना कान्हा हइ आधा, सखी रे!
राधा बिना कान्हा हइ आधा।
वइसे तो किसना के सारा जग प्यारा;
राधा मगर सब्भेला जादा, सखी रे!
राधा बिना कान्हा हइ आधा।
राधा के नेह बनल संबल किसन के;
चीर देलक कंसा के लादा, सखी रे!