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रिमझिम बरसे लगलई / जयराम दरवेशपुरी

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उठलइ पुरूब से कजरिया
हो गेल कहा-कूप अन्हरिया
रिमझिम बरसे लगलइ न
कारी-कारी रे बदरिया

बादर गरजे
बिजुरी चमके
हवा चलइ पुरबईया
उबडुब पानी से पथरिया
शीतल भे गेल उमस समइया
से मनमां हरसऽ लगलइ ना
हावा उड़वऽ लगल चुनरिया

बारिस बिनु
हलइ सुनसान
भर गेल सगर खेत खरिहान
गगनमां लगल सुनावे तान
हर बैल लेके बढ़ल किसान
से गोरिया तरसेऽ लगलइ न

देखि-देखि सूनी रे सेजरिया
पानी के जे हलइ पियासल
भींजल सब के कंठ तरासल
बगिया सोलहो सिंगार कइलक
ताके सुरूज हकासल
से बदरा बरखऽ लगलइना
पिछुले केवाल के पथरिया।