भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सांस-सांस में
रच-पच बिगसै
रंग रेत रा
कांई है सारै
म्हारो जीणो-मरणो
रेत रै लारै
आ रेत रोसै
मा है मा, देखो लाड
आ रेत पोखै
हां, सोवै-जागै
ऐ दिन-रात म्हारा
रेत रै सागै