Last modified on 2 सितम्बर 2014, at 20:59

रै रक्षा करो संविधान की / सतबीर पाई

रै रक्षा करो संविधान की
बाजी लागो चाहे जान की...टेक
दो साल ग्यारा महीने अठारा दिन मैं त्यार होया
एक आदमी एक वोट ये मौलिक अधिकार होया
छुआछूत मिटाई जड़ तै फेर सबका सुधार होया
थी हिम्मत विद्वान की...

छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास में लागू करया गया
नारी को सम्मान उसमें लिखकै धर्या गया
समता स्वतन्त्रता भाईचारा उसमें भर्या गया
इब नजर पड़ै ना बेईमान की...

देश के अन्दर सबतै ज्यादा जुटकै करी पढ़ाई थी
ना जाणे उस महामानव नै कितनी डिग्री पाई थी
अपणे कोमल हाथों से उन्हें बढ़िया करी लिखाई थी
हो कीमत हर इंसान की...

पाई वाला सतबीर सिंह भी उसी की मार्फत गाता है
भीम की विचारधारा समाज को बतलाता है।
इसमें शक की बात नहीं वो संविधान निर्माता है
या बात ना झूठ तूफान की...