भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोटी रो टुकड़ो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बेजां ई सोरो है
ओ कैवणो
आदमी नै झुकणो नईं चाईजै
पण देखो तो सरी
मिनख री मनस्यावां
पांगळी करण खातर
बासी रोटी रो टुकड़ो
कुदड़का करतो
कुस्ती करण खातर ऊभो है
ओ तो मिनख है जिको कैवै
म्हैं फेर ई लड़ूंला !