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रो-रो के हँसना है ज़िन्दगी / शिवशंकर मिश्र

रो-रो के हँसना है जिंदगी
काय तेरा कहना है जिंदगी

काँटों के बीच किसी फूल-सा
खिलना-महकना है जिंदगी

जैसे पहाड़ों में दौड़ता
गीतों का झरना है जिंदगी

हारी बिसातें सहेजकर
बाजी पलटना है जिंदगी

मौत एक हकीकत है छूठ है
सच जो है, सपना है जिंदगी

‘मिशरा’ हदों की न बात कर
हद से गुजरना है जिंदगी