लड़की काग़ज़ रख कर भूल जाती है
जैसे शाम दिन को भूल जाती है
उसके हाथों का काग़ज़ धूप का टुकड़ा है
लड़की धरती पर धूप का टुकड़ा भूल जाती है
मेरी दुनियावी समझाइशों पे हँस कर
लड़की अपना ग़म भूल जाती है
डाँटता हूँ कि सीख जाए दुनिया के फ़साने
लेकिन अपनी आँखों में रख कर सब भूल जाती है।