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वर्षा / शैलेन्द्र शान्त

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बादल गरजा
बिजली चमकी
मगन हुई बरसा रानी
डूब गई राजधानी
दुखी हुए नागरिक
महानागरिक की बढ़ी परेशानी

ख़ुश हुआ खेतिहर
मन मोर-सा नाचा
सपने ने ली अंगड़ाई
इस मर्तबा
थोड़ा-बहुत कर्ज़
चुक ही जाएगा भाई।