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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
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देख ये हौसला मेरा, मेरे बुज़दिल दुश्मन
तुझ को लश्कर में पुकारा , तन-ए-तन्हा हो कर

उस शाह-ए-हुस्न के दर पर है फ़क़ीरों का हुज़ूम
यार हम भी ना करें अर्ज़-ए-तमन्ना जा कर

हम तुझे मना तो करते नहीं जाने से 'फ़राज़'
जा उसी दर पे मगर, हाथ ना फैला जा कर
</poem>
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