भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना<ref>मादक लड़खड़ाहट</ref> तेरे शह्र शहर में ।फिर बनेंगी मस्जिदें मयख़ाना तेरे शह्र शहर में ।
आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शह्र शहर में ।
जुर्म है तेरी गली से सर झुकाकर लौटना
कुफ़्र<ref>धर्मविरोधी</ref> है पथराव से घबराना तेरे शह्र शहर में ।
शाहनामे<ref>फ़ारसी कवि फ़िरदौसी की अमर रचना</ref> लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर
हर जगह है दफ़्न इक अफ़साना तेरे शह्र शहर में ।
कुछ कनीज़ें<ref>दासियाँ</ref> जो हरीमे-नाज़<ref>प्रेमिका का घर</ref> में हैं बारयाब<ref>जिसे प्रवेश मिल गया हो</ref>
माँगती हैं जानो-दिल नज़्राना तेरे शह्र शहर में ।
नंगी सड़कों पर भटककर देख, जब मरती है रात
रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शह्र शहर में ।
</poem>
{{KKMeaning}}