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मन की चाह / अनिल जनविजय

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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=अनिल जनविजय]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}
मन में मेरे चाह यही थी
 
तू मिलेगी मुझको तेरा प्यार मिलेगा
विरहाकुल मन को मेरे
तेरे उर का सार का मिलेगा
यही सोच मैं कलरव करता
दृष्टि धुंधली धुँधली हो गई मेरी
शेष अब कोई राह नहीं थी
1999 में रचित(2002)
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