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|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
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टूट कर आईना लगे है मुझे |
वो जो बन्दा ख़ुदा लगे है मुझे |
मैं भले को बुरा कहूँ क्यूँ कर
है बुरा जो भला लगे है मुझे |
ठीक ही तो पता बताया था
फिर भी कुछ ढूंढ़ता लगे है मुझे |
किसी आँगन में बजती शहनाई
क्या बताऊँ कि क्या लगे है मुझे |
रात भर नाचता नचाता रहा
वो मेरा साँवला लगे है मुझे |
माँग कर दिल हुआ शिकार ए ख़िरद
ये तो मेरी ख़ता लगे है मुझे
ये जो बैठा है हुजरा ए दिल में
मैं नहीं दूसरा लगे है मुझे |
कमसुख़न कमनिगाह कमआमेज़
कोई शायर " ज़िया " लगे है मुझे |
</poem>