भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
[[Category: ग़ज़ल]]
<Poempoem>
'''रचनाकाल : २००३/२०११'''
मन ही मन मुस्कुरा रही है जाड़े की धूप
गहरी नीली शाल में लिपटे देखा लिपटा दिखा था चांद कोचाँदतेरी यादों की धूप बीते पल-छिन<ref>समय के टुकड़े</ref> उड़ा रही है जाड़े की धूप
कब से मुब्तिला <ref>क़ैद</ref> थी गुलाबी गुलों में ख़ुशबूचप्पा-चप्पा सारे ख़ाब महका रही है जाड़े की धूप
इस सिम्त <ref>दिशा, ओर</ref> मैं तड़पता हूँ उस सिम्त तन्हा तुमदोनों को हमको इक जा <ref>जगह</ref> बुला रही है जाड़े की धूप
मैंने कभी कहा नहीं तुमने कभी सुना नहीं