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'''लेखन वर्ष: २००४ /२०११'''
शाख़ों पर लौट आये मौसम कोंपलों <ref>नये बूटे, buds</ref> केन क्यों फिर खिले, चमन में खिल रहे' गुल दो दिलों के
मेरी यह उम्र जायेगी तेरे लिये लिए ज़ाया<ref>व्यर्थ, बेक़ार, waste </ref>गर यह फ़ासले रहे रहेंगे यूँ ही मीलों के
तुम नहीं तो रातभर ये चाँदनी उदास रहती हैसब सभी ताज़ा कँवल <ref>कमल के फूल, flowers of lotus</ref> सूख गये हैं झीलों के
ज़ब्रो-सब्र <ref>प्रयत्न और सहनशीलता, trial and calmness</ref> से क़ाबू आया है मेरा दिलहर लम्हा-लम्हा बढ़ते हैं दौर मुश्किलों के
मैं लोगों दोस्तों की भीड़ में तन्हा रहता हूँ
मुझको रंग फ़ीके लगते हैं महफ़िलों के
मैं यह बात सोच के जल जाता हूँ सनमसुम्बुलतुम्हें तीर चुभते होंगे किन मनचलों के
‘नज़र’ आज वाइज़ है बहुत ख़ामोश, वो क्यों?क्या उसके पास हल नहीं मसलों हैं मसाइलों<ref>मुश्किलें, odds</ref> के
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