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|पीछे=रचि-रचि औरैं रूप, कबहुँ अनुराग बढ़ावैं / शृंगार-लतिका / द्विज
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|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 5
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<poem>
'''रोला'''
''(अनुशयाना, गुप्ता और लक्षिता का वर्णन)''

उजरत कहुँ संकेत हिऐं, बहु दुख उपजावैं ।
लखि सँकेत तैं फिरे स्याम, कहुँ बिरह बढ़ावैं ॥
हरि-सँग बिहरत लखैं सखी, तब निज रति गोवैं ।
लखि बिहार कौ चिह्न, दूति रस-बैन निचोवैं ॥४६॥
</poem>
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