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|पीछे=खेलि-रास हरि दुरैं, बहुरि बन-कुंजन माँहीं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=या बिधि बहु-लीला रचैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 5
}}
<poem>
'''दोहा'''
'''(संक्षिप्ततया नायक-वर्णन)'''
श्री राधा की कबहुँ हरि, जोवैं बन मैं बाट ।
लखि राधै हरि संभ्रमै, बर-अंगन कौ ठाट ॥४८॥
</poem>
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'''दोहा'''
'''(संक्षिप्ततया नायक-वर्णन)'''
श्री राधा की कबहुँ हरि, जोवैं बन मैं बाट ।
लखि राधै हरि संभ्रमै, बर-अंगन कौ ठाट ॥४८॥
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