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|पीछे=आई न जो बक-बावरे पैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़ / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
}}
<poem>
'''दोहा'''
''(कविकृत सज्जन प्रशंसा-वर्णन)''
लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं, दैहैं सुमति बनाइ ।
रहै भलाई भलेन मैं, केबल अंग-सुभाइ ॥६२॥
</poem>
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'''दोहा'''
''(कविकृत सज्जन प्रशंसा-वर्णन)''
लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं, दैहैं सुमति बनाइ ।
रहै भलाई भलेन मैं, केबल अंग-सुभाइ ॥६२॥
</poem>