भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वो धुन हैं हम जिसे कोयल ने गाके छोड़ दिया
गुलाब, ऐसे ही खिलते है हैं हम किसीने ज्यों
दिया जला के मुक़ाबिल हवा के छोड़ दिया
<poem>