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कलियों में राग-मरंद भरा
हँसता कण-कण छल-छंद भरा
मेरा मानस दुःख-द्वन्दद्वंद्व-भरा
जगता पाटल-सा सिहर, डोल
विस्मय के तट रो रहा मान
स्वर बनते जाते आत्म-दान
भय से नव-वय कालिकाकलिका-सामान
स्मिति भौंहों पर जा चढ़ी लोल
 
तुम कौन पिकी-सी रही बोल
यौवन माधवी-मुकुल में, निज प्राणों की पीड़ा-व्यथा घोल?
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